भारतीय दर्शनों में जैनदर्शन का महत्वपूर्ण योगदान है। जैनदर्शन के प्रतिष्ठापक भगवान ऋषभदेव ने समाज को जीने के लिए प्रारंभ से ही असि, मसि,कृषि, विद्या वाणिज्य एवं शिल्प की शिक्षा दी। समाज के उत्थान में प्रत्येक व्यक्ति का योगदान रहे इसलिए उन्होंने स्त्री शिक्षा का प्रमुख रूप से ध्यान रखा और अपनी पुत्रियों को अंक विद्या एवं अक्षर विद्या का पाठ पढाया। अपने पुत्रों में भरत प्रथम चक्रवर्ती हुए जिनके नाम पर इस देश का नाम “भारतवर्ष” पडा। इन्ही तीर्थंकर ऋषभदेव की परम्परा में अन्य 23 तीर्थंकर हुए। जिनमें पार्श्वनाथ और महावीर का नाम ऐतिहासिक दृष्टि से महत्पूर्ण है। भगवान महावीर ने सर्वोदय तीर्थ की स्थापना की जिसका उद्देश्य सामाजिक समरसता है। इनके दार्शनिक सिद्धान्तों में अनेकान्त, स्याद्वाद एवं नयवाद का प्रमुख स्थान है। स्याद्वाद का सिद्धान्त समाज में सुई का काम करता है, कैची का नही।
तीर्थंकर महावीर ने आचार प्रणाली में ज्ञान के साथ क्रिया को महत्व दिया। और उसकी आचार शैली में अणुव्रत व्यसन मुक्त समाज और सामायिक तथा प्रतिक्रमण के साथ समता परम लक्ष्य मुक्ति का उपाय बताया है। आज भी उनकी परम्परा में अनेक आचार्य, मुनिगण, आर्यिकाऐं तथा श्रावक-श्राविकाएं (पुरुष-स्त्री) धर्म के मार्ग पर आरूढ होकर विशुद्ध जैन जीवन शैली का आचरण कर समाज में समता का बीज वपन कर रहे है। उनके ही ज्ञान चारित्र की सम्यक उपासना तथा समाज में समन्वय की भावना करने को चारितार्थ करने हेतु आचार्य विद्यासागर सुधासागर जैन शोधपीठ की स्थापना 20 जून 2024 को छत्रपतिशाहू जी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर में पूज्य सुधासागर जी महाराज की प्रेरणा तथा माननीय कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक के मार्गदर्शन तथा दिगम्बर जैन समाज कानपुर व शोध न्यासी मण्डल के सहयोग इस पीठ की स्थापना हुई है। जो जैनदर्शन, प्राकृत और अपभ्रंश भाषा के अध्ययन में विशेष भूमिका निर्वहन कर रहा है।
शोधपीठ के प्रचार- प्रसार में मैं प्रो. अशोक कुमार जैन पूर्व अध्यक्ष एवं प्रो. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी कार्यरत हूँ । मेरे निदेशन में अब तक 20 शोधार्थीं का पी.एच.डी की उपाधि से सम्मानित किया गया जो विद्या के अनेक क्षेत्रों में कुशलता पूर्वक कार्य का संचालन कर रहे है। समाज में प्राकृत विद्या एवं जैनदर्शन के अध्ययन-अध्यापन के द्वारा राष्ट्र में व्यसन मुक्त समाज रचना व विश्वशांति की स्थापना हो सके।
आचार्य विद्यासागर और मुनि श्री सुधासागर जैसे महान संतों से प्रेरित यह शोधपीठ विशुध्द ज्ञान सदाचरण और लोककल्याण की भावना से कार्य करेगी।
आचार्य विद्यासागर सुधासागर जैन शोधपीठ उद्देश्य है—
शोधपीठ समाज के प्रत्येक सदस्य को आमंत्रित करती है कि वे इस ज्ञानयज्ञ में सहभागी बनें और “जीवन के वैज्ञानिक आधार—अहिंसा, सत्य और संयम” को अपनाकर आत्मकल्याण एवं समाज कल्याण की दिशा में अग्रसर हों।
निदेशक प्रो. अशोक कुमार जैन







जैन शोध पीठ, कानपुर के प्रेरणा स्त्रोत : पूज्य मुनिपुंगव सुधासागर महाराज का परिचय
शोध पीठ के प्रेरणा स्त्रोत परमपूज्य निर्यापक मुनिपुंगव सुधासागर जी महाराज के व्यक्तित्व कृतित्व ने जन-जन को प्रभावित किया है | जिन्हें परम जिनधर्म प्रभावक वास्तुविद, सिद्धवाक्, जैन-धर्म-दर्शन संस्कृति संरक्षक और शिक्षानुरागी आदि उपाधियों से सुशोभित किया गया है |
मुनि श्री का जन्म स्थान जिला सागर स्थित ग्राम ईशुरवारा है | इनके पिता का नाम रूपचन्द्र एवं माता का नाम शान्तिबाई है | आपका गृहस्थ अवस्था का नाम जय कुमार था | आपने प्रारम्भिक शिक्षा गृह-नगर ईशुरवारा एवं उच्च शिक्षा मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर से प्राप्त की | आपने परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र नैनागिरी में दिनांक 19 अक्टूबर सन् 1978 को ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण कर वैराग्य धारण किया | गुरु के मंगल आशीर्वाद से 10 जनवरी,सन् 1980 को नैनागिरी में क्षुल्लक दीक्षा, ऐलक दीक्षा 15 अप्रैल, सन 1982 एवं मुनि दीक्षा 25 सितम्बर, सन् 1983 ईसरी जिला-गिरीडीह में संपन्न हुई थी | मुनि श्री द्वारा समाज कल्याण के लिए अनेक कार्य किए गए जैसे- शिक्षा के क्षेत्र में इनकी प्रेरणा से ललितपुर, जयपुर, ब्यावर, अजमेर, टोंक राजस्थान, आदि अनेक स्थानों पर शिक्षायतनो की स्थापना की गयी | देश के युवाओं को शिक्षित करने के क्षेत्र में उन्होंने श्रमण संस्कृति संस्थान की स्थापना की जिसमें प्रत्येक वर्ष अनेक स्नातक तैयार हो रहे हैं जो श्रमण संस्कृति एवं भारतीय संस्कृति के संवर्द्धन एवं प्रचार प्रसार में महनीय योगदान दे रहे हैं| नारी शिक्षा के क्षेत्र में उनकी प्रेरणा से “संत सुधासागर कन्या छात्रावास “ की स्थापना की गयी जिसमें देश की बालिकाएं ज्ञानार्जन कर शिक्षा जगत में महनीय योगदान दे रही हैं |
मुनिश्री की मंगल प्रेरणा एवं समाज के श्रेष्ठियाँ एवं विश्वविद्यालय के पदाधिकारियों से विशेष सहयोग से 20 जून 2024 को आचार्य विद्यासागर सुधासागर जैन शोध पीठ की स्थापना जैन दर्शन एवं प्राकृत भाषा के क्षेत्र में विशेष अध्ययन-अध्यापन एवं शोध कार्य के लिए की गयी | जो सम्यक रूप से संचालित हो रही है | उनके द्वारा तीर्थ जीर्णोद्धार एवं नवतीर्थ संरचना, श्रावक संस्कार शिविर, साहित्य लेखन, संगोष्ठियाँ आदि अनेक कार्य इनकी प्रेरणा से हुए हैं | इस प्रकार भारतीय संस्कृति को मुनिश्री का अतुलनीय योगदान है |
आचार्य विद्यासागर सुधासागर: जैन शोध पीठ परिचय
आचार्य विद्यासागर सुधासागर जैन शोध पीठ, छत्रपति साहू जी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर के स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज़ संकाय में 20 जून 2024 को परम पूज्य सन्त शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के परम प्रिय शिष्य निर्यापक श्रमण मुनि पुंगव श्री 108 सुधासागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद एवं सन्निध्य में सकल दिगम्बर जैन समाज, कानपुर के अथक प्रयास से माननीय मुख्य अतिथि श्री असीम अरुण, समाज कल्याण मंत्री, विशिष्ट अतिथि प्रो. मणीद्र अग्रवाल, निदेशक आई. आई. टी., कानपुर तथा कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक जी द्वारा भव्य समारोह के साथ शोध पीठ की स्थापना दिनांक 20 जून 2024 को की गयी थी। यह जैन शोध पीठ विद्यार्थियो की संन्तुष्टि के लिए उच्चतम गुणवत्तापूर्ण जैन शैक्षणिक सेवाएं प्रदान करने तथा उन्हें आध्यात्मिकता और नैतिक मूल्यों से युक्त एकीकृत व्यक्तित्व विकसित करने का अवसर प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है।
प्रतिष्ठाचार्य श्री सुमित कुमार जैन ‘‘ शास्त्री’’ पीठ के प्रथम सचिव रहे | वर्त्तमान में प्रो. अशोक कुमार जैन (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के संस्कृत विद्याधर्म विज्ञान संकाय के जैन-बौद्ध दर्शन विभाग में प्रोफेसर) शोधपीठ में निदेशक पद का उत्तरदायित्व का निर्वाहन कर रहें हैं, जो संस्कृत प्राकृत और जैन दर्शन के विद्वान हैं | पं. सुमित कुमार जैन ‘शास्त्री’ समन्वयक, सहायक आचार्य डॉ. कोमल चन्द्र जैन ‘खडेरी’ और विद्वत् राहुल जैन ‘मडदेवरा’ इस शोध पीठ में प्राकृत एवं जैन दर्शन का अध्यापन का कार्य कर रहे |कार्यालय में लिपिक के रूप में जितेन्द्र कुमार यादव कार्यरत है।
शोध पीठ के लक्ष्य
1. लोक में प्राकृत और अपभ्रंश भाषा तथा जैन दर्शन के साहित्य का अध्ययन-अध्यापन |
2. प्राचीन भारतीय संस्कृति के स्वरूप को उद्घाटित करना।
3. पीठ द्वारा जैन दर्शन तथा इतिहास सम्बन्धित प्राकृत/पालि भाषाओं के उत्थान हेतु पाठ्यक्रमों को विकसित कर उनका विधिवत संचालन कराना।
4. जैनधर्म के मानवीय मूल्यों का प्रचार प्रसार कर राष्ट्रीयता की भावना को विकसित करना।
5. वर्तमान में प्रासंगिक परम्पराओं को पाठ्यचर्या के माध्यम से प्रचारित व प्रसारित करना।
6. मूल्य परक शोध कार्य संपादन कराना तथा जैन-दर्शन एवं प्राकृत भाषा पर शोध करने वाले छात्र-छात्राओं को शोध कराना |
कार्ययोजना
1. प्राचीनतम भाषा प्राकृत एवं जैन दर्शन तथा संस्कृति के विभिन्न विषयों पर संगोष्ठियों, कार्यशालाओं का आयोजन कराना |
2. ख्यातिलब्ध विद्वानों के व्याख्यानों का आयोजन कराना |
3. छात्र-छात्राओं के उत्साहवर्धन के लिए प्रतियोगिताओं का आयोजन कराना |
4. लेखन एवं भाषण के कौशल का प्रशिक्षण प्रदान कराना |
5. सभी लोगों के लिए स्वाध्याय कक्षा का आयोजन कराना |
कार्यालय संपर्क सूत्र – 9696077002
ईमेल आईडी- jainshodhpith@csjmu.ac.in
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