कुल गीत
है ज्ञान-गंगा स्थली सुहानी, तुम्हारी जय हो, तुम्हारी जय हो !!
उद्योग-लक्ष्मी की राजधानी, तुम्हारी जय हो, तुम्हारी जय हो !!
तू पीठ है बाल्मीकि गुरू की, तू तान है आदि कवि के सुर की
तुम्ही में लवकुश की है कहानी, तुम्हारी जय हो, तुम्हारी जय हो !
स्वतन्त्रता के प्रथम समर की, या क्रांति की उस नई लहर की
तुम्हारे कण-कण में वह निशानी, तुम्हारी जय हो, तुम्हारी जय हो !!
तुम्ही से प्रकटी ‘प्रताप-लहरी’, तुम्ही ने दी पूर्ण को गूँज गहरी
हुए जो ‘भूषण’ से स्वाभिमानी, तुम्हारी जय हो, तुम्हारी जय हो !!
“त्रिशूल” की काव्य-धार तीखी; यह कर्म भूमि ‘गणेश जी की
“नवीन’, ‘हसरत’ की गूँजी वाणी, तुम्हारी जय हो, तुम्हारी जय हो !
तमाम कालेज तेरी शिरायें, जहॉ पढ़ें छात्र – छात्राएँ
पढ़ायें गुरूजन महान ज्ञानी, तुम्हारी जय हो, तुम्हारी जय हो !!
ये आई०ई०टी०, ये एम०बी०ए० है, जहा जलें ज्ञान के दिये हैं
समाज विज्ञानी जीव – ज्ञानी, तुम्हारी जय हो, तुम्हारी जय हो !!
है भक्त वत्सल स्वरूप साजे, सरस्वती माँ यहाँ विराजे
है श्वेतवर्णी हे वीणा-पाणी, तुम्हारी जय हो, तुम्हारी जय हो !!
तुम्हारे मंदिर के सब पुजारी, कि कुलसचिव हों या कर्मचारी
स्वघर्म-रत, निर्भय, निरभिमानी. तुम्हारी जय हो, तुम्हारी जय हो ॥
गरीब हो या हो बेसहारा, सभी ने पाया यहाँ किनारा
तुम्हें न भाये मगर गुमानी, तुम्हारी जय हो, तुम्हारी जय हो ॥॥
ये देखो सूरज निकल रहा है, कमल भी जल में मचल रहा है
“आरोह तमसो ज्योतिः” निशानी, तुम्हारी जय हो, तुम्हारी जय हो ||